मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

वृद्धो को इक आशियाना चाहिए

वृद्धो को इक आशियाना चाहिए "
सकून से जीने का आसरा चाहिए |
भूली बिसरी यादोँ को याद करने का बहाना चाहिए |
अपने जीवन की उपलब्धियों को गिनाने का मकराना चाहिए |
जिंदगी किसी के रोके नहीं रूकती ,गुजरती रहती है |
यह तो अपना कारवां खुद ही बनाती रहती है |
कोई जिंदगी को नजाने क्या समझ कर जीता है |
जिंदगी से नजाने क्या क्या उम्मीदे रखता है |
यह तो जिंदगी का पड़ाव है जो समय के साथ साथ चलता रहता है |
इससे किसी को भी घबराना नहीं चहिये यह किसी के लिए नहीं रुकता है |
जीवन में सारी आंकांक्षाएपूर्ण नहीं हो पाती|

घुट घुट कर जीने से जिंदगी की मुश्किलें आसान नहीं होती |

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